Tuesday, March 30, 2010

सबसे खतरनाक

सहमी सी चुप में जकरे जाना बुरा तो है
पर सबसे खतरनाक नहीं होता
कपट के शोर मे
सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
किसी जुगनू की लो में पढना बुरा तो है
मुठियौं भीच कर बस वक्त निकाल लेना बुरा तो है
सबसे खतरनाक नही होता
सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तरप का सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर और
काम से लौट कर घर जाना
सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना
सबसे खतरनाक वह घरी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी
जो आपकी निग़ाह मे रुकी होती है
सबसे खतरनाक वह आँख होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीजो से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है
जो रोजमर्रे के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है
सबसे खतरनाक वह दिशा होती है
जिसमे आत्मा का सूरज डूब जाये
और उसकी मुर्दा धुप का कोए टुकरा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाये
मनुष्य के जीवन शैली के अनेक प्रकार है किन्तु दो प्रमुख है -
एक जो दुसरे के दुःख दर्द को अपना समझ कर उससे मुक्ति का उपाय करते है , उनके जीवन क्षेत्र का विस्तार इतना विशाल होता है की उनके सामने उनका अपना समाज , गावं, देश की सीमाए छोटी परती है .
दुसरे शैली के लोग दुसरो के दुःख दर्द तो दूर अपने रिश्तो नातो के भी पीरा को बाटना उन्हें असम्भव लगता है मनुष्य सुझबुझ का धनी कहलाता है . वह विकास के रास्ते पर छलांग भरता हुआ आज वहां पहुच गया जहाँ पहुचने की उसने कल्पना नहीं की थी , वहीं दूसरी ओर वह आत्मीयता , संवेदनशीलता और सौजन्य के रास्ते से जितना पीछे हटा है वह भी एक सपना ला लग रहा है . इन दोनों जीवन शैलियो के बीच उदासीनता की एक नई संस्कृति पनप रही है , इस संस्कृति के मूल मे कम करने वाली घातक वृति है -- हमें क्या ? व्यक्ति के आसपास कोइ अच्छा कम होता है तो उसकी प्रशंसा का अभाव, इसी प्रकार अपने परिपार्श्व में घटित अवांछनीय घटनायो का प्रतिवाद करने की मानसिकता भी उसकी नहीं होती है , कोइ अच्छा करे या बुरा हमें क्या ? हम अपनी जिन्दगी जीते है दुसरो की जिन्दगी में झाकने की अनाधिकार चेष्टा क्यों करे ? यह बात किसी व्यक्ति या परिवार के अन्तरंग जीवन के बारे में सोची जा सकती है किन्तु जहाँ किसी का जीवन चौपट होता हो , वहां व्यक्ति का मौन कितना खतरनाक है ?
जो व्यक्ति अरण्यवासी हो हिमालय के कंदराओ मे बैठा हो वह जितना अंतर्मुखी होगा उतना ही लाभ होगा , किन्तु परिवार और समाज के बीच जीने वाले व्यक्तियों की यह उपेक्षा पूर्ण निति गलत परंपराओ को प्रोत्साहन देती है होना तो चाहिए , विश्व के किसी कोने मे होने वाले अमानवीय घटनायो का प्रतिकार . किन्तु जहाँ आँख के सामने नाक के नीचे घिनोने कृत्य होते रहे और मनुष्य उससे सर्वथा अनजान मौन बैठा रहे वहां समाज में गलत प्रवृतिया क्यों न बढ़ेगी ?

1 comment:

  1. bahut badhiya lekh ......manushy ke jewan darshn vyakt karta ye lekh .

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