Tuesday, March 23, 2010

संवेदना और सहानुभूति में अंतर्विरोध (सत्य घटना )

यह एक सत्य घटना है जो अब कहानी सी लगती है । आज से दो ढाए साल पहले की घटना है - एक मासूम लरकी मधेपुरा के एक चौक पर रात को किसी के द्वारा फेंक दी गयी । सुबह उसे अस्पताल लाया गया चेकअप के बाद पता चला की उसके साथ रेप हुआ , उसकी मानिसक स्थिति पूरी तरह से खराब हो चुकी थी । हम सब उसे रांची के मानसिक अस्पताल में भेजने के लिए सरकारी स्तर से शुरू किया ,इस फोर्मलितिज़ में कुछ समय लग रहा था तभी एक दिन अख़बार में खबर छपी ' अस्पताल की पगली माँ बनाने वाली है ' । माँ बनने तक उसे अस्पताल में ही रख उसकी देखभाल करने की बात प्रशासन ने कही । सही समय पर उसने एक बेटे को जन्म दिया , एक निह्शन्तान दम्पति ने उसे गोद ले लिया । कुछ दिन बाद फिर से हमसब उसे भेजने की तैयारी करने लगे , लेकिन सरकारी काम में तो दो तीन महीने दो तीन दिन जैसा होता है । एक दिन मैंने स्कुल में अख़बार पढ़ रही थी तभी मेरी नजर एक समाचर पर परी--- ' पगली फिर माँ बनी ' मै फुट फुट कर रोई , मेरे साथी शिक्षको ने समझाया ऐसे रोयेंगी तो आसूं कम पर जायेंगे क्योकि ये तो रोज़ की घटना है जो दुनिया में घटते रहती है ,हम कुछ नहीं कर सकते । मैं घर आई फिर अस्पताल गयी देखने ऐसा क्या है उसमे जो उसके साथ ऐसी घटना घटती है ? वह बिलुकुल गन्दी मंदी अस्पताल के गेट पर बैठी थी कभी जोर जोर से बोलती कभी हस्ती , उसके आस पास लोग कुछ देर खरा रहते और सहानभूति व्यक्त करते कोण पापी है जो इसके साथ इतना बुरा किया ? शायद मेरे मन मै भी इस सवाल के साथ साथ एक और सवाल उठ रहे थे इतनी गन्दी मंदी को कौन हाथ लगाएगा ?
एक दूसरी घटना इसके कई साल पहले से शुरू थे वह भावनात्मक रूप से असुरक्षित थी किसी के साथ धीरे धीरे उसकी दोस्ती हो गयी वह उसकी कमी को जनता था उसने उसका पूरा फयदा उठाया प्यार के नाम पर शादी के नाम पर । शादी की बात आती तो वह नये नये बहाने घटते और वह बेब्कुफ़ लरकी उसे सही समझती । उसने सोचा सचमुच इसके साथ इतनी समस्या है और वह उसके बिना रह भी नहीं पाती तो मर जाओ क्योकि जिन्दगी को जीने के दो ही रास्ते होते है आदमी परिवेश को अपने अनुकूल बना ले या फिर परिवेश के अनुरूप खुद को ढाल ले । प्रति कुल परिस्थिति मौत आम बात होती है । उसने कई बार आत्महत्या की कोशिश की लेकिन उसने उसे मरने भी नहीं दिया। उसके घर वाले को उलटे सर चढ़ कर बोलता आप सब इसका ध्यान नहीं रखते मै मानवता के नाते इसका ध्यान रखता और उसके पास आकर बोलता मैं अपने बाबु को अब कही जाने नहीं दूंगा हम जल्दी ही सबकुछ ठीक कर लेंगे दुनिया की एक मात्र सचाई यह है की मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता फिर उसे घर जाने को मजबूर कर देता लेकिन एक दिन उसने सब कुछ सुन लिया । उसका दिमाग कोंधा यह सुनकर एकाएक मेरे दिमाग मै मधेपुरा की उस पगली का चेहरा सामने आया उसके चारो ऑर की सहानुभूति भरे शब्द याद आये ओर समझ में आ गया की उनलोगों की ही रात के अँधेरे में संवेदना मर जाती होगी । वह लरका पेशे से डॉक्टर है और वह जगह अस्पताल जहा दया ममता करुना होनी थी वहा अजीब से घुटन होती है । उस लरकी ने सोच लिया पगली की कहानी को सुन कर वह उसके बिना जी ले तो उसकी किस्मत मर जाये तो उसकी किस्मत लेकिन वह उसके पास नहीं जाएगी । मुझे नहीं पता उस लरकी के साथ क्या होगा हाँ वह पगली मर गयी ।

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