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इसके लिए सिर्फ और सिर्फ वो परिवेश जिम्मेवार है हम ये कहकर अपनी जिम्मेवारी से मुक्त नहीं हो सकते हजारो सालो से ये चलता आ रहा है हम इसे नहीं बदल सकते । बदलाव तो आया है क्योकि हजारो साल पहले वो नहीं था जो आज है । परम्परा और संस्कृति अच्छी है उसका हमे अनुशरण करनी चाहिये विवेकपूर्वक । जब बच्चे का जन्म होता है तो उसे बहुत सारा उपहार मिलता है उसमे कुछ उपहार तत्काल उपयोगी होते है और कुछ हमेशा के लिए । जो हमेशा के लिए उपयोगी होते माता पिता उसे सम्हाल के रखते है जो तत्काल उपयोगी होते उपयोग कर ख़त्म कर देते । उपयोगिता ही मूल्य निर्धारित करती है चाहे वो मानव मूल्य हो या वस्तु मूल्य । अर्वाचीन कल मे मानव मूल्य घट रहे है वस्तु मूल्य बढ़ रहा है ।यह संवेदनहीनता की प्रकाष्ठ है उनकी प्रविर्ती बन गयी है मानसिक शोषण करने की ,ये कभी पश्चाताप कर सुधरना नहीं चाहते । प्रकृति के साथ उतना ही छेर छार करनी चाहिये जितना वो संतुलित कर पाए नहीं तो हम स्वयं भी परेशान रहेंगे
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